Tuesday 30 October 2012




धुआ धुआ सा छाया है मेरे चारो ओर 
नजाने क्यूँ धुंधली सी है आज मेरी सोच 
हवा में आज नमी कुछ अलग सी ही है 
भयंकर तूफ़ान से आने के पहले की शान्ति जैसे फेली हुई है  
अजीब सा ही मौसम छाया हुआ है मेरे मन पे  
कभी दिखे सूर्य की किरणे  
तो कभी चाँद क्या तारे भी न चमके



  





एक सांप जैसे लिपटा पढ़ा है मुझसे 
चाहे तो अगली हरकत पर ही मुझको दस् दे 
क्यूँ लग रहा है जैसे 
ज़रूर कही किसी कोने में कुछ खतरनाक सा चल रहा है 
मेरे खिलाफ कोई जैसे कुछ साज़िश रच रहा है 
खुली हवा में सांस ले रहा हूँ 
फिर भी घुटन महसूस कर रहा हूँ
और जैसे अपने एक डरवाने सपने को जी रहा हूँ




कल तक मेरे सामने ही थी मेरी मंजिल 
फिर क्यूँ आज कही वो छिप गयी है 
इस कोहरे के धुये में कही खो गयी है 
लुका छुपी का खेल बचपन से खेलता रहा हूँ
अपने रास्ते से भटक आज गया हूँ
पर अभी न ही अपनी हिम्मत और न ही ये खेल हारा हूँ
ऐ मंजिल जा चुप ले जहाँ छुप सकती है 
आजमा ले मेरा जोर  
और लगा ले अपना जितना जोर तू लगा सकती है 
बेश्ख मेरी नज़र से तू अभी छुप जाएगी 
पर मेरे हौसले से तू न बच पायेगी 
मेरे हौसले के आगे तू हार ही जाएगी 


- अवनीश गुप्ता