Wednesday 1 August 2012




  
आज  मुझे  फिर  से  धोका  मिल  गया 
ज़िन्दगी  में  एक  सबक  और  सीख  लिया
और  ऐसा  लगा  सतरंगी ज़िन्दगी का एक और नय्या रंग देख लिया 
तुम  हो  मेरे  अपने  लगता  है  सिर्फ  एक  भ्रम  था  मेरा 
शायद  पराये  को   अपना  समझने  का  जैसे  एक  पाप  था  मेरा 
वो  कहते  थे  अनजान  कभी  अपनापन  नहीं  दिखा  सकता 
पर  ज़िन्दगी  के  इस  एक  घटे  वाक्य  ने  समझा  दिया 
दिखने  को  तो  वो  अनजान  इंसानियत  भी  नहीं  दिखा  सकता 
ज़िन्दगी  सच  में  कभी  सतरंगी  इन्द्रधनुष  लगती  है 
कभी  कभी  रुलाती  है  कभी  कभी  हसाती  है 
अपने सब  रंग  से  वाकिफ  होने  से  पहले  फिर  एक  नय्या  रंग  दिखा  जाती  है 
पर  गौर  करो  तो  अंत  में  समझ  ही  जाओगे  
जिस  तरह  अलग  अलग  रंग  के  फूल  कितने  भी  पसंद  आये  
और  कितने  भी आँखों को भाये 
लगते  अच्छे  एक  साथ  एक  गुलदस्ते  में  ही  है 
उस्सी  तरह  काँटें  चाहए  कितने  भी  नोकिल्ले  लगे 
पैरों  में  इन  काँटों  से  पड़े  छाले  ही  
दुःख  के  बाद  सुख  का   एहसास  दिलाते  है 
निराशा  के  बाद  आशा  की  किरण  जगाते   है 
ज़हन  में  बस  के  बार  बार  याद  आते  है 
और  इस  रंग  बिरंगी ज़िन्दगी  का  सफ़र  रोमांचक  बनाते  है 

अवनीश  गुप्ता 


8 comments:

  1. really enjoyed reading your poems..
    it was nice..

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  2. dear अवनीश जी ,
    अच्छा लेखन ..
    साधुवाद .....
    डॉ. नीरज
    http://achhibatein.blogspot.in/

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  3. nice piece of writing...!!

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  4. nice piece of writing...!!

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