being POETIC





 ' कजाखस्तान '



सूरज धीरे धीरे ढलने लगा है
एक अच्छे सफ़र का अंत अब दिखने लगा है
वक़्त में पिच्छे जाने का जी कर रहा है
सफ़र को दोबारा शुरुवात से तय करने को दिल जो मचल रहा है

जब घर से चला था तो अकेला था
अपने साथ सिर्फ उमीदो के सहारे निकल पढ़ा था
पर लम्हा लम्हा उम्मीद से बढ़कर बीता
और मेरी यादों की तिजोरी में जुढ़ता चला

तिजोरी में कैद एक एक लम्हे की याद अमूल्य है
हर याद अपने आप में एक जैसे न देखा रत्न है 
अंगिनत हीरे की चमक समान  हसी के लम्हे है
तो कुछ समुंदर के मोती की तरह रोने के पल भी फस्से है










सफ़र की अंतिम रेखा को देख कर अजीब सा लग रहा है
अरे अभी तो चालू किया था सफ़र ऐसा लग रहा है
फिरसे लग रहा है जैसे घर को छोरके जाना पढ़ रहा है
यहाँ बीती हर घटना को बार बार जीने का मन कर रहा है
और जो कुछ न आजमा सके उसका तजुर्बा पाने का दिल कर रहा है

पर इस तिजोरी पे अब ताला लगाने का वक़्त आ गया है
इस सफ़र को ख़तम करने का शरण आ गया है
ज़िन्दगी की किताब में एक और पन्ना भर गया है
और एक नए पन्ने को भरने का समय आ गया है
आशा है तिजोरी में कैद रत्न हमेशा चमकते रहेंगे 
और आने वाले ज़िन्दगी के अनेक सफर्रो में
रोशिनी फेलाते रहेंगे
रोशिनी फेलाते रहेंगे


अवनीश गुप्ता 



    
 'तस्वीर'

आज मेरा फिरसे मन उब गया
इस दुनिया की मोह माया से फिर मेरा मन उठ गया
और एक लम्बे इन्तेकाल के बाद वापिस मेरा ऐसा जी कर गया
जो अपना कलम उठाके एक नयी दुनिया बनाने का मन बन गया

एक नयी दुनिया की विचित्र चित्र धुंधली सी दिखने लगी
और अचानक मेरी सोच एक नए रस्ते पे चलने लगी
ऐसा लगा ख्यालो की बारिश मेरे मन  पर गिरने लगी
क्यूँकी थी जो तस्वीर धुंधली वो भीनी भीनी सी अब दिखने लगी

अब मैं उस तस्वीर को थोडा थोडा पहचानने लगा था
बेशक आँखों से देख पा रहा था पर समझ नहीं आ रहा था
और खुद ही से बार बार ये सवाल उठा रहा था
की अवनीश तू कैसी तस्वीर बना रहा है जो खुद ही की सोच में उलझे जा रहा है

जैसे जैसे समय का चक्र चलता गया
वैसे ही तस्वीर का एक के बाद एक नया रंग निखरता गया
और मुझे इस तस्वीर को देखने का नया पहलूँ मिलता गया
एक बंद ताले की मुझे चाब्बी जैसे मिल ही गयी
और इस तस्वीर की गुथी सुलझाने की मुझे एक तरकीब सूझ गयी
क्यूंकि आँखों के साथ मेरे मन को भी ये तस्वीर दिख ही गयी

तस्वीर बहुत खुबसूरत थी
कभी न देखे रंगों के मेल से बनी थी
पर मैंने सोचा, क्यूँ मेरी सोच से परे थी
फिर आवाज़ गूंजी की गलती तो मेरी थी
मैंने एक ऐसी तस्वीर बनाने की कोशिश करी थी
जो हकीकत से मीलो दूर , बहुत दूर खड़ी थी







क्यूँकी,
यहाँ सिर्फ हसी ही हसी थी
और आसूओ की कमी थी
यहाँ कोई दौड़ नहीं चल रही थी
जिसमे सबको आगे निकलने की पढ़ी थी
क्यूँकी,
यहाँ भूखे के नाम भी अन्न के दो दाने थे
और बेघरो के भी ठिकाने थे
चारो तरफ सिर्फ ख़ुशी के नजराने थे
क्यूँकी,
यहाँ सिर्फ अमीर नहीं
गरीबो का भी बोल बाला था
सिर्फ पुरुष नहीं
नारी को भी बराबर का दर्जा दिया जाता था
क्यूँकी,
हर कोई नफरत जैसे लफ़्ज़ों से अनजाना था
हर मानस एक दूसरे को अपना मानता था
कोई यहाँ हथियार नहीं उठाता था
बस एक दूसरे को प्यार से गले लगाता था

अब आँखे खोली तो फिर वास्तविकता में आ गया
एकदम से सनाटे को शोर ने भगा दिया
अपने खयालों को किसी कोणे में मैंने छुपा दिया
इच्छाओं को कही गहराई में दबा दिया
एक और तस्वीर को मैंने अपने मन के कैनवास से मिटा दिया
और ऐसे ही मैंने एक और तस्वीर को भुला दिया
और ऐसे ही मैंने एक और तस्वीर को भुला दिया

- अवनीश गुप्ता 




‘लुका छुपी‘

धुआ धुआ सा छाया है मेरे चारो ओर 
नजाने क्यूँ धुंधली सी है आज मेरी सोच 
हवा में आज नमी कुछ अलग सी ही है 
भयंकर तूफ़ान से आने के पहले की शान्ति जैसे फेली हुई है  
अजीब सा ही मौसम छाया हुआ है मेरे मन पे  
कभी दिखे सूर्य की किरणे  
तो कभी चाँद क्या तारे भी न चमके



  





एक सांप जैसे लिपटा पढ़ा है मुझसे 
चाहे तो अगली हरकत पर ही मुझको दस् दे 
क्यूँ लग रहा है जैसे 
ज़रूर कही किसी कोने में कुछ खतरनाक सा चल रहा है 
मेरे खिलाफ कोई जैसे कुछ साज़िश रच रहा है 
खुली हवा में सांस ले रहा हूँ 
फिर भी घुटन महसूस कर रहा हूँ
और जैसे अपने एक डरवाने सपने को जी रहा हूँ




कल तक मेरे सामने ही थी मेरी मंजिल 
फिर क्यूँ आज कही वो छिप गयी है 
इस कोहरे के धुये में कही खो गयी है 
लुका छुपी का खेल बचपन से खेलता रहा हूँ
अपने रास्ते से भटक आज गया हूँ
पर अभी न ही अपनी हिम्मत और न ही ये खेल हारा हूँ
ऐ मंजिल जा चुप ले जहाँ छुप सकती है 
आजमा ले मेरा जोर  
और लगा ले अपना जितना जोर तू लगा सकती है 
बेश्ख मेरी नज़र से तू अभी छुप जाएगी 
पर मेरे हौसले से तू न बच पायेगी 
मेरे हौसले के आगे तू हार ही जाएगी 


- अवनीश गुप्ता 

            
      
     
      'अक्सर'


अक्सर  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ 
और  एक  अलग  ही  दुनिया  में  खो  जाता  हूँ
कभी  खुली  आँखों  से  सपने  बुनता  हूँ 
तो  कभी  उन्ही  सपनो  की  गहराइयों  में  रात  को  डूब  जाता  हूँ
अपने  सपनो  को  देखके  उन्ही  सपनो  में  जीने  का  दिल  करता  है 
पर  फिर  उन्ही  हसीन  हसरतो  को  हकीक़त  मनाने   का  मेरा  जी  करता  है 

अक्सर  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ
और  खुद  ही  से   ये  सवाल  उठाता  हूँ 
की  क्यूँ  इंसान  इतना  नादान  है  
जो  खुद  ही  से  अभी  तक  अनजान  है 
की  क्यूँ  इंसान  है  इतना  अजीब 
हमेशा  इसकी  हसरते  होती  है  कुछ  पाने  की  हसीन 

अक्सर  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ
और  वक़्त  की  ताक्कत  को  महसूस  कर  भोच्का  रह  जाता  हूँ
ये  तो   वक़्त  वक़्त  की  बात  है 
की  कल  जो  अपने  थे  आज  पराये  हो  गये  
और  कल  के   पराये  आज  हमारे  सहारा  देने  वाले  कन्धे  बन  गये  
ये  तो  वक़्त  वक़्त  की  बात  है 
की  सुख  में  मिल  जायेंगे  बहुत  ख़ुशी  बाटने  के  लिए 
पर  कौन  है  अपना  कौन  पराया  दुःख  में  इसका  एहसास  होता  है 

अक्सर  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ
और  बीतें  लम्हों  की  यादों  में  घूम  हो  जाता  हूँ
कभी  कभी  उन्  सबकी  याद    जाती  है 
कभी  कभी  उन्  सब  की  कमी  मुझे  खल  जाती  है 
कैसा  होता  मेरा  आने  वाला  कल 
अगर  मेरा  आज  भी  होता  मेरा  बिता  हुआ  कल 

अक्सर  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ
और  हज़ारों  सवालों  से  युही  घिर  जाता  हूँ
की  कैसा  होता  अगर  ऐसा  होता 
अगर  ऐसा  होता  तो  कैसा  होता 

अक्सर  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ
की  क्यूँ  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ
की  क्यूँ  मैं  बार  बार  कही  खो  जाता  हूँ
की  क्यूँ  मैं  इतने  सवाल  उठाता  हूँ
की  क्यूँ  मैं  याद  करता  और  फिर  जुदा  हो  जाता  हूँ
इन्ही  सब  सवालों  के  जवाब  ढूंडने  बार  बार  मैं  निकल  जाता  हूँ
और  अक्सर  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ
और  अक्सर  मैं  सोच  में  पढ़  जाता  हूँ 


अवनीश गुप्ता 


         


                 'क्यूँ आज'


आज अपने आप को शब्दों के दरमियाँ बया करने का फिर मन कर गया 
नजाने क्यूँ आज फिरसे लिखने का जी कर गया 
ऐसा लग रहा है जैसे मेरे साथ बहुत कुछ है घट गया 
जो आज एक दम से फिर कलम  उठाने का मन कर गया 
नजाने क्यूँ आज फिरसे लिखने का जी कर गया 
पता नहीं क्यूँ मन में एक अलग सी चंचलता है आज 
पता नहीं क्यूँ दिल में एक अलग सी हलचल है आज 
कुछ है नहीं बताने को फिर भी आज क्यूँ कुछ बताने को जी कर गया 
नजाने क्यूँ आज फिरसे लिखने का जी कर गया 
ऐसा लगा जैसे कुछ न घट के भी घट गया 
इस अन्घठी घटना का मेरे पर ऐसा असर पढ़ गया 
जो न होके भी मेरे दिल को लग गया 
और चुपके से जाके मेरे मन में बस गया 
नजाने क्यूँ  आज  फिरसे लिखने का जी कर गया 
शायद ऐसे ही इस मन का आज मन कर गया 
शायद ऐसे ही आज दिल कर गया 
जो आज फिरसे लिखने का जी कर गया 
जो आज फिरसे लिखने का जी कर गया 

- अवनीश गुप्ता  














'सतरंगी  ज़िन्दगी'
  
आज  मुझे  फिर  से  धोका  मिल  गया 
ज़िन्दगी  में  एक  सबक  और  सीख  लिया
और  ऐसा  लगा  सतरंगी ज़िन्दगी का एक और नय्या रंग देख लिया 
तुम  हो  मेरे  अपने  लगता  है  सिर्फ  एक  भ्रम  था  मेरा 
शायद  पराये  को   अपना  समझने  का  जैसे  एक  पाप  था  मेरा 
वो  कहते  थे  अनजान  कभी  अपनापन  नहीं  दिखा  सकता 
पर  ज़िन्दगी  के  इस  एक  घटे  वाक्य  ने  समझा  दिया 
दिखने  को  तो  वो  अनजान  इंसानियत  भी  नहीं  दिखा  सकता 
ज़िन्दगी  सच  में  कभी  सतरंगी  इन्द्रधनुष  लगती  है 
कभी  कभी  रुलाती  है  कभी  कभी  हसाती  है 
अपने सब  रंग  से  वाकिफ  होने  से  पहले  फिर  एक  नय्या  रंग  दिखा  जाती  है 
पर  गौर  करो  तो  अंत  में  समझ  ही  जाओगे  
जिस  तरह  अलग  अलग  रंग  के  फूल  कितने  भी  पसंद  आये  
और  कितने  भी आँखों को भाये 
लगते  अच्छे  एक  साथ  एक  गुलदस्ते  में  ही  है 
उस्सी  तरह  काँटें  चाहए  कितने  भी  नोकिल्ले  लगे 
पैरों  में  इन  काँटों  से  पड़े  छाले  ही  
दुःख  के  बाद  सुख  का   एहसास  दिलाते  है 
निराशा  के  बाद  आशा  की  किरण  जगाते   है 
ज़हन  में  बस  के  बार  बार  याद  आते  है 
और  इस  रंग  बिरंगी ज़िन्दगी  का  सफ़र  रोमांचक  बनाते  है 

अवनीश  गुप्ता 













'वो मुलाक़ात'


वो जगह नई थी 
वो माहौल ही था अलग 
और मेरे चारो तरफ था अनजाना अनजाना सा सब 
एक किसी अपने की तलाश थी बस 
नज़र घुमाई तो एक मायूसी सी छाई
फिर नाजाने वो कहाँ से मेरे सामने आई
उसको देख के बस दिल ने दिमाग से बार बार पुछा
तू है एक हकीकत या फिर बस मेरा एक सपना
उसको देखा तो ऐसा लगा सारा वक्त थम गया
और ऐसे ही मेरा सारा वक्त गुज़र गया
क्या था उसमे मैं पहचान नहीं पाया
एक न जाने अजीब सा मुझ में जूनून आया
और ज़िन्दगी जीने का एक पागलपन छाया
उसको देख के ऐसा लगा मुझे दुनिया मिल गयी है 
और  ज़िन्दगी  क्यूँ  जीनी  है  इन   सवालों  के  जैसे  जवाब  मिल  गये  है
उसको देख के ऐसा लगा मेरी ज़िन्दगी बदल गयी है
और ज़िन्दगी वास्तव में है हसीन इस्सकी जैसे तसल्ली मिल गयी है
जानता तो नहीं था उसे
फिर  भी  ऐसा  लगा  मुझे  कहना  है  बहुत  कुछ  उसे 
दिल  से  निकली  बात   पर  होठों  पे  आके  थम  गयी 
ऐसा लगा मेरी धड़कने और साँसें वही रुक गयी 
फिरसे उसे बात करने की हिम्मत दिखाई 
पर  जैसे  ही  नज़र  मिलाई  एक  अजीब  सी  हीच  किचाहत  सी  आई 
क्या थी वो मैं आज तक नहीं समझ पाया 
कौन   थी  वो  मैं  आज  तक  नहीं  जान  पाया 
उन चन्द पलों को
उन चन्द घड़ियों को 
उन बेताबियों के हसीन लम्हों को 
उस पहली और आखरी मुलाक़ात को 
मैं आज तक नहीं भुला पाया 
मैं आज तक नहीं भुला पाया 


- अवनीश गुप्ता 





'तनहा रास्तें'



उन रास्तों पे एक बार चल के देखो 
तुम्हे अपने होने पे यकीन हो जायेगा 
उन रास्तों को एक बार चुनके देखो 
चडेगा जो जूनून उससे तुम्हे प्यार हो जायेगा 
उन रास्तों पे एक बार कदम बढ़ाके देखो 
अपने मकसत से वास्ता क्या 
अपने आप से तुम्हारा रूबरू हो जायेगा 
उन रास्तों को एक बार आजमा के देखो 
इस दुनिया की दुश्वारी  
और कढ़वी हकीकत से तुम्हारा सामना हो जायेगा 
उन रास्तों पे एक बार जाके देखो 
गिर कर खड़े होने का तुम्हारा हौसला बुलंद हो जायेगा 
उन रास्तों को एक बार मुकम्मल करके देखो 
बेशख सब भूल जाओगे पर वो सफ़र याद रह जायेगा 
अरे कभी तो उन सुनसान रास्तों पे चलने का तजुर्बा करो 
जो यहाँ से गुज़र चुके तुम्हे उनका एहसास ही हो जायेगा 
बेशख नहीं  मिले  तुम्हे अपनी मंजिल 
पर कभी चले थे इन रास्तों पर तुम भी 
दुनियावाले क्या तुम्हे खुद पे गर्व हो जायेगा 

 
-अवनीश गुप्ता 








'कुछ तो कमी है'



बेशख बैठा मैं उनके साथ ही हूँ
पर नजाने वहां मौजूद क्यूँ नहीं हूँ 
फिर लगा कुछ तो कमी है 
मेरे अन्दर एक अजीब सी हलचल मची हुई है 
अपनों के बीच  हूँ पर अपनापन  नहीं  है
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
नजाने क्या चल रहा है मेरे मन में 
बस यही जान ने की कोशिश में हूँ 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
महेनत तो बहुत करता हूँ 
पर उनके जैसी सफलता नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
ज़िन्दगी में पाया तो बहुत कुछ है 
पर वोह हासिल करने की ख़ुशी क्यूँ नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
ज़िन्दगी में करना तो बहुत कुछ है 
पर जो करता हूँ उस में दिलचस्पी नहीं  है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
रिश्ते नाते बहुतों से जोड़े है 
पर उन्न रिश्तों में मिठास नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
मुझे दोस्त तो बहुत कहते है 
पर उन्न दोस्तों की दोस्ती नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
उसको चाहता तो बहुत  हूँ 
पर नजाने क्यूँ सिर्फ चाहत है प्यार नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
देख तो बहुतकुछ  चूका हूँ 
पर अभी भी दुनिया देखि नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
लक्श्य भी है पाने का जूनून भी है 
पर उन्न तक रास्तें अभी साफ़  नहीं  है
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
सब कुछ  है तो ज़िन्दगी सही है 
कुछ  नहीं  है तो ज़िन्दगी यही है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है  


-अवनीश गुप्ता




        'ख़ामोशी'



ये ख़ामोशी क्या है शायद कोई नहीं पहचानता
न जाने इसके पीछे छुपे कितने राज़ है ये कोई नहीं जानता
कोई क्यूँ इसका सहारा लेता है
ख़ामोशी के पीछे झाको तो इसकी भी एक वजह है
ये तोजैसे एक पर्दा है
जो दर्द का सागर समाये बैठी है
लेकिन ख़ामोशी बोले तो वो भी बोल जाती है
जो बात कह के भी नहीं कही जाती है
इस दुनिया की मोह माया में वोह सुकून नहीं
जो कई बार खामोश रह कर ख़ामोशी दे जाती है
किसी की ख़ामोशी कभी रिश्ते बनाती है
तो कभी उन्ही रिश्तों में दरार डालती है
सच को झूट दिखाती है
तो कभी झूट को सच बनाती है
किसी का सहारा बन जाती है
तो कभी बेसहारा कर जाती है
किसी की ज़िन्दगी बचाती है
तो कभी किसी को ख़तम कर जाती है
ऐसे ऐसे खेल ख़ामोशी खेल जाती है
सच में ख़ामोशी क्या है कोई नही जानता
सच में ख़ामोशी क्या है कोई नहीं पहचानता 


- अवनीश गुप्ता



     

       "बेदर्द " 


मेरे यार कहते है बड़ा बेदर्द है तू 
ये सुनके दिल में दर्द होता है खूब 
यारों दिल में तो दर्द है इतना 
सात समुन्दरो में न होगा पानी मेरे दर्द जितना 
क्या बताएं यारो तुम्हे अपने दुखरो की कहानी 
तुम समझ ना पाओगे क्या है हमारी परेशानी 
हम वो नहीं जो अपने दुःख से दुनिया को रुलाये पर 
हम तो अपने दर्द को छुपाये और दुनिया को हसाए 
फिर भी मेरे यार कहते है बड़ा बेदर्द है तू 
ये सुनके हँसत हूँ, एक दर्द और अपने दिल में छुपा लेता हूँ .

-अवनीश गुप्ता 


   "मकसद"


मेरे  होने  का  मकसद क्या  है 
इसके  जवाब  से  अभी  तक  वाकिफ  नहीं  हूँ
ज़िन्दगी  का  सफ़र  तो  चालू  कबका  कर दिया  है 
पर मंजिल  से  अभी  तक  वाकिफ नहीं   हूँ 
इस  सफ़र  में  मिलले तो  बहुत है 
पर   उन्न  सबकी  नियत  से  अभी  तक  वाकिफ  नहीं  हूँ 
एक  पल  कुछ   करने  का  जी  चाहए 
तो  अगले  ही  पल मन कही  और  दौड़  जाए 
सब  एक  पहेली  जैसा  नज़र  आये 
पर  ज़िन्दगी  एक  पहेली  ही  तो  है  ये  जान  गया  हूँ 
और  इस  पहेली  को  सुलझाना  ही  ज़िन्दगी  है  ये  समझ  गया  हूँ .

- अवनीश गुप्ता 



      

   "विश्वासघात" 



जिनको  अपना  समझा  था
वो  हमी  को   समझ  पाए
जिनपे  हमने  विश्वास  किया  था
वो  हमी  पर  विश्वास    कर  पाए
ज़िन्दगी  में  इतने  धोके  खा  चूका  हूँ अब
की  समझ  नहीं  आता  किसको अपना  समझूं
किस  पर  विश्वास  करून  अब
अब  हमको  कोई   समझना  भी  चाहे
अब  कोई   विश्वास  का  खेल  फिरसे खेलना  भी  चाहे
तो  डर  लगता  है  की  इस ज़ख़्मी को कही  एक  ठोकर  और  न  पढ़  जाए
ज़िन्दगी  का  सफ़र  अकेले  ही  शुरू  किया  था
 अकेले  ही  चला  जा रहा  हूँ
और अकेले  ही  ख़तम   करूँगा   ऐसा    लगता  है
फिर  भी  दिल  में  एक  आशा  की  किरण  है 
की  कही  किसी  मोड़  पे  एक  मुसाफिर  और  मिलेगा
और  यह  सफ़र  हमारे  साथ  पार  करेगा .

- अवनीश गुप्ता 


          

            "नाजाने"



दिन भर सोच तेरे बारे थक जाता हूँ मैं 
बेचैन दिल से सोने चला जाता हूँ मैं 
उसकी आँखें नाजाने क्या नशा कर गई है मुझपे 
वो नाजाने कौनसा प्यार का जाम पिला गई है मुझे 
की कम्भाक्त मेरे सपनो में भी चली आती है 
और रोज़ रात मेरी नींद उड़ा ले जाती है . 

- अवनीश गुप्ता 



           "खेल ज़िन्दगी का "


ज़िन्दगी  का  दस्तूर  मैं अभी तक  जान  नहीं  पाया
ये   ज़िन्दगी  कैसा खेल  है  में पहचान  नहीं  पाया
इस  खेल  के  नियम  अजीब है  बहुत
किसी  को  मिले  थोडा  और  किसी  को  मिले  बहुत
कब  क्या हो  जाए  ये  नहीं  पता  लगा  सकते
कल  जो  जीते  आज  भी  जीत  जाये  ये  कह नहीं  सकते
कोई  थोडा  पाके भी खुश  
तो  कोई  सब  पाके  भी  नाखुश
अभी  तो  में  इस  खेल  का  नया  खिलाड़ी  हूँ
पर  थोडा  बहुत  मैं  भी  इस  खेल  को  समझने  लगा  हूँ
ज़िन्दगी  के  जीना  का  मज़ा  वही  ले  पता  है
जो  इस  खेल  में  हार  कर  भी  खेलना  चाहता  है     

-अवनीश गुप्ता


  

        "गुस्ताखी  माफ़"


ऐसा क्या गुन्नाह कर दिया जाने अनजाने में हमने
की वो  नफरत ही करने लग गये हमसे
हमारे कहे को दिल पे ऐसा क्या ले लिया उन्होंने
की हमसे गुफ्तगू भी करना छोर दिया उन्होंने
हमने तो बस उनके साथ मज़ाक करना छह था
पर मजाक तो वो  हमारे साथ कर गये 
जिस जुर्म से बेखबर थे हम 
ऐसे जुर्म की सज़ा भुगतने  छोर दिया हमें
एक मौका मिल्ल्ले तो अपनी गुस्ताखी को भी सुधार दे 
बस वो  हमें  इस कदर नज़र अंदाज़ करना बंद तो करे.

-अवनीश गुप्ता

3 comments:

  1. kya baat hai avanish... aap to chhupe rustam nikle shayar saahb...
    nice stuff... :):):)

    ReplyDelete
  2. वाह क्या बात है, हर रंग छुपा है...

    ReplyDelete